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*कलमकारों की उपेक्षा से मर्माहत हैं साहित्यकार पत्रकार*

*कलमकारों की उपेक्षा से मर्माहत हैं साहित्यकार पत्रकार*

*कलमकारों की उपेक्षा से मर्माहत हैं साहित्यकार पत्रकार

प्रदेश के बजट में मीडिया जगत के लिए कुछ भी विशेष नहीं


प्रयागराज |
प्रदेश के कलमकारों साहित्यकारों पत्रकारों की घोर उपेक्षा से बहुत मर्माहत हैं पत्रकार साहित्यकार क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार ने जो बजट प्रस्तुत किया है उसमें मीडिया जगत के लिए कुछ भी विशेष नहीं किया गया है |
भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय ने उत्तर प्रदेश बजट को साहित्यकारों और पत्रकारों के लिए घोर निराशाजनक बताया है और कहा है कि इस बजट में लघु एवं मध्यम समाचार पत्र पत्रिकाओं तथा रचनाकारों साहित्यकारों के लिए कोई भी विशेष प्रावधान न देना बहुत दुख की बात है | पिछले कई वर्षों से मीडिया जगत पर अनेक प्रकार के प्रतिबंधों से उन्हें प्रताड़ित किया गया उनके विज्ञापनों में कटौती की गई और साहित्यकारों के लिए भी कुछ विशेष नहीं किया गया
डॉक्टर उपाध्याय ने अपेक्षा की है कि सरकार अपने अनुपूरक बजट में विशेष रूप से साहित्यकारों पत्रकारों और रचना धर्मियों के लिए कुछ न कुछ आवश्यक प्रावधान ले आएगी | उत्तर प्रदेश में प्रेस मान्यता नियमावली इतनी जटिल कर दी गई है कि वास्तविक रचना धर्मी पत्रकार मान्यता के दायरे में नहीं आ पाते |
उत्तर प्रदेश की विज्ञापन नीति में भी परिवर्तन की मांग कई वर्षों से की जा रही है किंतु लघु एवं मध्यम समाचार पत्र पत्रिकाओं के प्रति घोर उपेक्षा की जा रही है | वयोवृद्ध साहित्यकारों और पत्रकारों के लिए जीवन निर्वाह भत्ता देने की जो नियमावली प्रस्तुत की गई थी वह तो और भी जटिल है | प्रदेश सरकार से मीडिया जगत ने जो अपेक्षा की थी वह पूरी तरह सफेद हाथी सिद्ध हो रही है | मीडिया जगत को न्याय भी नहीं मिल पा रहा है | अनेक साहित्यकार पत्रकार कथित रूप से पुलिस प्रशासन और माफियाओं द्वारा प्रताड़ित किए गए जो वर्षों से न्याय के लिए वह दर-दर भटक रहे हैं | इनके ऊपर सरकार की दृष्टि कभी नहीं पड़ती | सबका साथ सबका विकास का नारा केवल नारा ही बनकर रह गया है यह धरातल पर कदाचित ही उतर पाएगा |

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