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*अभी नहीं तो कभी नहीं* बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री*
*अभी नहीं तो कभी नहीं* बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री*
- *अभी नहीं तो कभी नहीं*
-सुरेन्द्र अग्रवाल - बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने देशभर में जातिगत भेदभाव मिटाकर सनातन धर्म को मानने वाले सभी देशवासियों को एकजुट करने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए उन्होंने अपनी पहली पदयात्रा का ऐलान किया है।
श्री शास्त्री जब अपने मुखारविंद से आम जनमानस को संबोधित करते हैं तो ऐसा लगता है जैसे उनकी जिव्हा पर साक्षात सरस्वती मां विराजमान हैं। रविवार को छतरपुर के एक होटल में पदयात्रा को लेकर उन्होंने पत्रकार वार्ता में खुलकर अपने इरादों को स्पष्ट किया। उनका संबोधन पूरा होते ही पत्रकारों ने सवालों की झड़ी लगा दी। ऐसा कोई सवाल नही था जिसका उन्होंने ठोक कर जवाब नहीं दिया हो।
श्री शास्त्री की पदयात्रा को लेकर जहां आम नागरिकों में उत्साह है वहीं विभिन्न प्रकार की चर्चाओं का बाजार गर्म है। सोमवार को एक सैलून पर जब मैं पहुंचा तो वहां पर भी पदयात्रा तथा जातिगत भेदभाव को लेकर चर्चा चल रही थी। एक ब्राह्मण और एक क्षत्रिय महाशय वहां पहले से विराजमान थे। उन्होंने सवाल उठाया कि जब मुगलों ने देश पर आक्रमण किया क्या तब हिन्दू नहीं थे? और जब अंग्रेजों ने भारतीय जनता को गुलाम बनाया क्या तब हिन्दू नहीं थे? ऐसे सवालों पर मैं कब तक चुप्पी साधे रहता। मैंने भी उस चर्चा में भाग लिया। मैंने कहा कि तब भी हिंदू थे और आज भी हैं। तब देश में मीर जाफर और जयचंद जैसे भी लोग थे और आज उनकी तादाद पहले से ज्यादा बढ़ गई है। लेकिन जो देशभक्त थे उन्होंने मुगलों से भी संघर्ष किया था और अंग्रेजों से भी लोहा लिया था । हजारों लाखों लोगों ने उनसे संघर्ष करते हुए अपना बलिदान दिया था। अनेक महिलाओं तक ने देश के दुश्मनों को धूल चटाई थी।
आज़ एक नौजवान संत यदि जातिवाद को खत्म करने का बीड़ा उठाकर सोये हुए हिन्दू समाज को एकजुट कराने के लिए अलख जगा रहा तो आपको क्या दिक्कत है। तब उन्होंने एक और सवाल दाग दिया।
बोले तो क्या शास्त्री जी किसी दलित महिला से शादी करेंगे? यह है हमारे समाज की सोच। कोई व्यक्ति व्यवस्था में बदलाव करने के लिए आगे बढ़ रहा है तो उसमें भी छिद्रान्वेषण करने वाले लोग मौजूद हैं।
इससे मुझे एक कहानी याद आ रही है। एक व्यक्ति अपने बेटे के साथ एक गधे को लेकर जा रहा था तो लोगों ने सवाल उठाया कि कैसे बेवकूफ लोग हैं। उस व्यक्ति ने आगे बढ़कर बेटे को गधे पर बैठा दिया तो लोगों ने कहा कि यह कैसा लड़का है कि बाप पैदल जा रहा है और बेटा शान से बैठा है। आगे चलकर उस व्यक्ति ने बेटे को उतार कर खुद गधे पर बैठ गया तब लोगों ने कहा कि कैसा व्यक्ति है कि मासूम लड़का पैदल जा रहा है और बाप बड़े शान के साथ गधे पर सवार होकर जा रहा है। इसके बाद दोनों बाप-बेटे गधे पर सवार हो गए तब लोगों ने कहा कि बेचारा गधा दोनों के बोझ से मरा जा रहा है, इन्हें शर्म नहीं आती। अंत में बाप-बेटे ने गधे को अपने ऊपर लाद लिया फिर भी वही कहानी दोहराई गई। मतलब आप समाज के लिए कुछ भी अच्छा कीजिए सवाल और टीका टिप्पणी करने वाले हमेशा उंगलियां उठाते रहेंगे।