Blog

*यह याचिका कलयुग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है और इस मामले ने कोर्ट की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है।*

*यह याचिका कलयुग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है और इस मामले ने कोर्ट की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है।*

Powered by myUpchar

केरल के एक फैमिली कोर्ट ने एक बेटे को आदेश दिया था कि वो अपनी मां को 2000 रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता दे। बेटा इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट चला गया। ये कहते हुए कि मैं ही क्यों दूं, और भी तो बेटे हैं!

हाईकोर्ट के जज जस्टिस पी वी कुन्हीकृष्णन ने बेटे के तर्क पर गहरा दुख जताते हुए कहा कि शर्म आनी चाहिए, 100 साल की एक बुजुर्ग औऱ लाचार मां को सिर्फ 2000 रुपये नहीं दे सकते। उन्होंने अपने आदेश में लिखा है, “भरण-पोषण भत्ता के लिए याचिका दायर करते समय याचिकाकर्ता की मां 92 वर्ष की थीं। अब वह 100 वर्ष की हो चुकी हैं और अपने बेटे से भरण-पोषण की उम्मीद कर रही हैं! मुझे यह कहते हुए शर्म आ रही है कि मैं इस समाज का सदस्य हूं, जहां एक बेटा अपनी 100 वर्षीय मां से सिर्फ 2,000 रुपये मासिक भरण-पोषण देने से इनकार करने के लिए अदालती लड़ाई लड़ रहा है!”

इसी साल फरवरी में पंजाब का एक मामला आया था। बेटों ने पिता की 50 बीघे जमीन ले ली। मां अपनी बेटी के साथ रहने लगीं। मां को आर्थिक तंगी हुई, तो गुजारा भत्ता के लिए अदालत जाना पड़ा। अदालत ने 5000 रु प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। बेटा हाईकोर्ट चला गया और
तर्क दिया कि चूंकि मां उसके साथ नहीं रह रही थीं, ऐसे में पारिवारिक अदालत मेंटिनेंस का आदेश पारित नहीं कर सकती थी। हाईकोर्ट के जज ने अपने फैसले में लिखा था कि ” यह याचिका कलयुग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है और इस मामले ने कोर्ट अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है। 5,000/-रुपये की राशि भी कोई ज्यादा नहीं थी। आप पिता की प्रॉपर्टी ले चुके हैं और फिर भी 5000 रुपये के लिए हाईकोर्ट चले आए..।”

Related Articles

Back to top button